Natasha

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तमस (उपन्यास) : भीष्म साहनी

मेज़ पर नाश्ते के लिए बैठने से पहले रिचर्ड दहलीज़ पर ठिठका खड़ा रहा।

"क्या सोच रहे हो?" लीज़ा ने रिचर्ड के कन्धे पर सिर रखते हुए कहा।

“सोच रहा हूँ कि कहाँ से शुरू करूँ।"

"तुम यहाँ के लोगों के बारे में जानना चाहती हो न, यहाँ की स्थितियों के बारे में..."

"मैं कुछ भी जानना नहीं चाहती। मैं यही जानना चाहती हूँ कि तुम दफ्तर से कब लौटोगे?" और लीज़ा हाथ बढ़ाकर रिचर्ड का वक्ष सहलाने लगी। रिचर्ड ने झुककर उसके होंठ चूम लिए।

“अभी से ऊबने लगीं?"

उसे फिर से भास हुआ जैसे क्षितिज पर कोई बादल का टुकड़ा नमूदार हो गया है जो धीरे-धीरे बड़ा होने लगेगा, गहराने लगेगा और समय पाकर सारे आकाश को ढंक लेगा।

रिचर्ड ने उसे और ज़्यादा ज़ोर से बाँहों में भींच लिया। पर रिचर्ड को इस दुलार में कोई विशेष रस नहीं मिल रहा था। इसके पीछे एक प्रकार की आशंका थी कि अबकी बार लीज़ा के साथ कैसे दिन करेंगे। अपने होंठों से लीज़ा के बाल और माथा और आँखें सहलाते हुए उसे किसी विशेष उत्तेजना का भास नहीं हो रहा था। रात को जिस देह को उत्तेजना और आग्रह के साथ वह लीज़ा की देह के साथ चिपटाए रहता था, इस समय वही देह उसे स्थूल और मांसल-सी लग रही थी। लीज़ा को बहलाने के लिए वह केवल प्रेम का अभिनय कर रहा था, एक प्रकार का फर्ज़ अदा कर रहा था।


तभी मेज़ के पीछे अँधेरे में खड़ा खानसामा धीरे-से आगे बढ़ आया। रोशनी के वृत्त में पहुंचने पर उसकी सफ़ेद वर्दी पर बँधा लाल रंग का कमरबन्द चमक उठा। दबे पाँव, तनिक भी आहट किए बिना वह मेज़ पर नाश्ता लगाने लगा।


लीज़ा और रिचर्ड पहले ही की भाँति एक-दूसरे की बाँहों से बँधे रहे। पहले-पहल, जब कभी खुले दरवाज़े में खड़े वे एक-दूसरे से प्यार कर रहे होते और कोई खानसामा या नौकर अचानक किसी काम से आ जाता तो लीज़ा ठिठककर अलग हो जाती थी, पर रिचर्ड उसे बाँहों में दबाए रखता, और खानसामा अपना काम करता रहता। झेंप के कारण लीज़ा अपनी आँखें बन्द कर लेती ताकि वह खानसामा की उपस्थिति को भूली रहे। पर धीरे-धीरे वह समझ गई थी कि खानसामा एक नेटिव ही तो है, इस पर भी मामूली खानसामा है, इसलिए उसकी उपस्थिति को वह बाधा नहीं समझती थी।


“अबकी बार तुम्हें ज़रूर किसी न किसी काम में दिलचस्पी लेते रहना चाहिए, लीज़ा।"


"किस काम में?"


"कितने ही काम हैं। डिप्टी कमिश्नर की पत्नी तो जिले की प्रथम महिला गिनी जाती है, तुम जो भी काम हाथ में लोगी, उसी में अन्य अफसरों की बीवियाँ तुम्हारी मदद करेंगी।"


"मैं जानती हूँ, जानती हूँ। रेड-क्रॉस के लिए चन्दा इकट्ठा करो, फ्लॉवर-शो का आयोजन करो, बच्चों का फ़ीट तैयार करो, सैनिकों की मदद के लिए कपड़े और जूते इकट्ठे करो, यही ना?"


“एक और संस्था भी है जो यहाँ खोलने का इरादा है, जानवरों की देखभाल और रक्षा के लिए। यहाँ पर अभी तक इस किस्म की कोई संस्था नहीं है। कैंटोनमेंट की सड़कों पर आवारा कुत्ते घूमते रहते हैं, उन्हें हटाना, घोड़ागाड़ियों में बूढ़े लँगड़े घोड़े जुते रहते हैं...।"


"इनका क्या करोगे?"


“इन्हें मरवा देना चाहिए। इनसे काम लेते रहना तो जुल्म है। आवारा कुत्ते बीमारी फैलाते हैं, हलक जाते हैं तो लोगों को काट खाते हैं। तुम कोई-सा काम चुन लो, जिसमें तुम्हारी रुचि हो।"


“तुम तो डिप्टी कमिश्नरी करो और मैं कुत्ते मरवाती फिरूँ? मुझे क्या पड़ी है।" उसने कहा, “तुम मेरे साथ मज़ाक कर रहे हो। तुम हमेशा मेरे साथ मज़ाक़ करते हो।"


"मैं मज़ाक नहीं करता, मैं तो चाहता हूँ तुम किसी न किसी काम में रुचि लेने लगो।"


“मैं तुम्हारे कामों में रुचि लूँगी। तुम मुझे बताओ जो सुबह बता रहे थे।...हिन्दुस्तानी लोगों के बारे में।"


रिचर्ड मुस्करा दिया।

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